कुछ जख्म ऐसे हैं कि दिखते नहीं,
मगर ये मत समझिये कि दुखते नहीं।
घर में रहा था कौन कि रुखसत करे हमें,
चौखट को अलविदा कहा और चल पड़े।
खरीद पाऊँ खुशियाँ उदास चेहरों के लिए,
मेरे किरदार का मोल इतना करदे खुदा।
ग़म-ए-हयात ने बख़्शे हैं सारे सन्नाटे,
कभी हमारे भी पहलू में दिल धड़कता था।
जी रहे हैं तेरी शर्तो के मुताबिक़-ऐ-जिन्दगी,
दौर आएगा कभी हमारी फरमाइशो का भी।
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