घर का दरवाजा इस अंदाज से खोला उसने,
कि जैसे मैं नहीं कोई और था आने वाला।
बुरा वक्त पूछ के नहीं आता दोस्तो,
कई बार जज को भी वकील करने पड़ जाते है।
अभी तो देखना बाकी बहुत कुछ हैं सियासत में,
चुनावी दौर हैं कितने जनाज़े ये उठाएगी।
अब और नही होती शायरी हमसे,
सुनो, भाड मे जाओ तुम जिसकी होना हो जाओ।
बूँद बूँद को तरस रही है हमारी सरज़मीं कहने को तो,
हम उस देश के वाशी हैं जिस देश में गंगा बहती है।
No comments:
Post a Comment