मोहब्बत है गर तो मिज़ाज ज़रा नर्म रखिये,
ज़िद्दी होने से इश्क़-ऐ-सुकून में ख़लल पड़ता है।
मैं इश्क हूँ, तु जीन्दगी, मैं लफ़्ज हूँ, तुमं बंदगी..
मै रिश्ता, तुमं वाद़ा कोई, मैं जुंनूनं, तु दीवानगी।
कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ..
की खुदा नूर भी बरसाता है आज़माइशों के बाद
तुमने ही बदले हे सिलसिले अपनी वफ़ाओ के..
वरना, हमे तो आज भी तुम से अज़ीज़ कोई न था।
इश्क़ वो है.. जब मैं शाम को मिलने का वादा करूँ
और.. वो दिन भर सूरज के होने का अफ़सोस करे।
No comments:
Post a Comment