तुम कहो तो हम तुम्हारी जिंदगी से ऐसे निकल जाये,
जैसे किसी गहरी चोट के बाद आँख से आँसूं।
वक़्त जरूर लगा पर मैं संभल गया,
क्यों की.. मै ठोकरों से गिरा था किसी की नज़रों से नहीं।
मुझे आजमाने वाले शख्स तेरा शुक्रिया,
मेरी काबिलियत निखरी है तेरी हर आजमाइश के बाद।
बस आज इतने से अल्फ़ाज़ कहने हैं आप से,
ख़्याल रखा करो अपना अच्छे लगते हो तुम।
तेरी यादों की नौकरी में दीदार की पगार मिलती है,
खर्च हो जाते हैं अश्क नैनों के, रहमत कहाँ उधार मिलती है।
No comments:
Post a Comment