दो मुलाक़ात क्या हुई हमारी तुम्हारी,
निगरानी मे सारा शहर लग गया।
क़ैद ख़ानें हैं बिन सलाख़ों के,
कुछ यूँ चर्चें हैं तुम्हारी आँखों के।
फर्क नहीं पडता दुश्मन कि संख्या कितनी है,
जीत तो अपने बुलंद हौसलों से होती है
फर्क नहीं पडता दुश्मन कि संख्या कितनी है,
जीत तो अपने बुलंद हौसलों से होती है।
तेरी यादों की खुशबू से, हम महकते रहतें हैं
जब जब तुझको सोचते हैं, बहकते रहतें हैं।
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