तुझ को सोचा तो बहुत पर लिखा कम मैंने,
की तेरी तारीफ के काबिल मेरे अल्फाज कहां।
मैंने ये जाना था कि अल्फाज मेरे गूँगे हैं,
पर सुना है पढ़ने वालो के दिल में बहुत शोर करते है।
मैंने माँगा था थोड़ा सा उजाला अपनी..
ज़िन्दगी में चाहने वालो ने तो आग ही लगा दी।
हम वो ही हैं, बस जरा ठिकाना बदल गया हैं अब,
तेरे दिल से निकल कर, अपनी औकात में रहते हैं।
मुझे आजमाने वाले शख्स तेरा शुक्रिया,
मेरी काबिलियत निखरी है तेरी हर आजमाइश के बाद।
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