गर्दिश तो चाहती है तबाही मेरी मगर,
मजबूर है किसी की दुआओं के सामने।
काश एक ख़्वाहिश पूरी हो इबादत के बगैर,
वो आके गले लगा ले मेरी इज़ाजत के बगैर।
मिली हैं रूहें तो, रस्मों की बंदिशें क्या हैं,
यह जिस्म तो ख़ाक हो जाना है, फिर रंजिशें क्या है।
करनी हो पहचान अगर गमगीन शख्स की..
दोस्तों गौर से देखना वो मुस्कुराते बहुत है।
शायरी के शौक़ ने इतना तो काम कर दिया,
जो नहीं जानते थे उनमें भी बदनाम कर दिया।
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