कह दो ना इस दर्द को.. तुम्हारी तरह बन जाये,
ना मुझे याद करें.. और ना मेरे करीब आये।
आ जाइए के आप से पहले न आए मौत,
अब वक़्त रह गया है बहुत कम बहुत ही कम।
ताउम्र इस जहां में कौन रहने आया है,
बंद मुठ्ठी लिए आता, बंद मुठ्ठी लिए छोड़ जाता है।
टपकती है निगाहों से बरसती है अदाओं से,
मोहब्बत कौन कहता है कि पहचानी नहीं जाती।
दलीलों से दवा का काम लेना सख़्त मुश्किल है,
मगर इस ग़म की ख़ातिर ये हुनर भी सीखना होगा।
No comments:
Post a Comment