पन्नों के परे भी है एक ज़िन्दगी,
सब किरदार, किताबों में नहीं होते।
काश की वो लौट आए मुझसे ये कहने,
कि तुम कौन होते हो मुझसे बात ना करने वाले।
ये तो परिन्दों की मासूमियत है साहेब,
वर्ना दूसरों के घरों में अब आता जाता कौन है।
चलता हूं यारो कुछ काम करता हु,
खुद को हँसा के अपने गम को गुमनाम करता हु।
अगर मालूम होता की इतना तडपता है..
इश्क.. तो दिल जोड़ने से पहले हाथ जोड़ लेते।
मुझको ढूंढ लेती है रोज़ एक नए बहाने से,
तेरी याद वाक़िफ़ हो गयी है मेरे हर ठिकाने से।
वो रोया तो ज़रूर होगा, खाली कागज़ देखकर,
ज़िन्दगी कैसी बीत रही है.. पूछा था सवाल उसने।
इस हकीकत से खूबसूरत कोई ख्वाब नही,
इश्क मर्जी है खुदा की कोई इत्तफाक नही।
इंतज़ार हमारा करे कोई मंजिल हमारी बने कोई,
दिल की यह आरजू है छोटी, दिल में आके रहे कोई।
आखिर किस कदर खत्म कर सकते है.. उनसे रिश्ता,
जिनको सिर्फ महसूस करने से.. हम दुनिया भूल जाते है।
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