ख़बर जहां मिलती है अपने होने की,
हम उस मंजिल पर भी खोए खोए हैं।
गुनाह इश्क़ अगर है तो ग़म नहीं,
वो आदमी ही क्या जो एक भी ख़ता न करे।
लो मैं आखों पे हाथ रखत हूँ,
तुम अचानक कहीं से आजाओ।
लगता है हम ही अकेले हैं समझदार,
हर बात हमें ही समझाई जा रही है।
निगाह-ए-इश्क़ का अजीब ही शौक देखा,
तुम ही को देखा और बेपनाह देखा।
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