ना जाने कैसा रिश्ता है इस दिल का तुझसे..
धड़कना भूल सकता है पर तेरा नाम नही।
हमारी आरजूओं ने हमें इंसान बना डाला,
वरना जब जहां में आये थे बन्दे थे खुदा के।
रूठा हुआ है हमसे इस बात पर जमाना ,
की शामिल नहीं है फितरत में हमारी सर झुकाना।
जिन्हें देखने को तरस गयी थी निगाहे,
उन्हें देखकर बरस पड़ी आज मेरी निगाहें।
मैं याद तो हूँ उसे, पर ज़रूरत के हिसाब से,
लगता है मेरी हैसियत, कुछ नमक जैसी है।
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