बहुत ज़ोर से हँसे थे हम, बड़ी मुद्दतों के बाद,
आज फ़िर कहा किसी ने, मेरा ऐतबार कीजिये।
किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मेरा नाम,
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते।
लाख दिये जला के देख तु अपनी गली में,
रोशनी तो तब होगी जब हम आयेगे।
उसकी हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकू,
ढूंढ़ने उसीको चल हूँ जिसे कभी पा भी न सकू।
अपनें हाथों मे दुआओं की तरह उठा लूँ तुम को,
जो मिल जाओ तो किसी खज़ाने की तरह सम्भालू तुमको।
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