रास आने लगती है तन्हाई भी,
बस एक-दो रोज़ बुरा लगता है।
तुम्हें ये कौन समझाये, तुम्हें ये कौन बतलाये,
बहुत खामोश रहने से, ताल्लुक टूट जाते है।
आईना कब किसको, सच बता पाया है,
जब देखा दायाँ तो, बायाँ ही नजर आया है।
ज़ुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आज़माए गये,
ज़ुल्म भी सहा हमने और ज़ालिम भी कहलाये गये।
नाराज़ ना होना कभी बस यही एक गुज़ारिश है,
महकी हुई इन साँसों की साँसों से सिफ़ारिश है।
रहे न कुछ मलाल बड़ी शिद्दत से कीजिये,
नफरत भी कीजिये तो ज़रा मोहब्बत से कीजिये।
ज़माने के सवालों को मैं हँस के टाल दूँ लेकिन,
नमी आखों की कहती है मुझे तुम याद आते हो।
नदी के किनारों सी लिखी उसने तकदीर हमारी,
ना लिखा कभी मिलना हमारा, ना लिखी जुदाई हमारी।
जज़्बात कहते हैं खामोशी से बसर हो जाए,
दर्द की ज़िद्द है कि दुनिया को खबर हो जाए।
वक़्त वक़्त की मोहब्बत है वक़्त वक़्त की रूसवाईयां,
कभी पंखे सगे हो जाते हैं तो कभी रजाईयां।
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