ज़माने में बस ये दो हादसे नही होते,
हम तुमसे जुदा, तुम हमारे नही होते।
क़लम जब तुमको लिखती है,
दख़ल-अंदाजी फ़िर हम नहीं करते।
तेरी याद में मेरी कलम भी रो पड़ी तू ही बता,
मैं कैसे कह दूं कि मुझे तुझसे मोहब्बत नहीं।
खुश हूँ कि मुझको जला के तुम हँसे तो सही,
मेरे न सही किसी के दिल में बसे तो सही।
नहीं फुर्सत यकीं मानो हमें कुछ और करने की,
तेरी यादें, तेरी बातें बहुत मसरूफ़ रखती है।
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