कीमतें गिर जाती हैं अक्सर खुद की,
किसी को कीमती बनाकर अपना बनाने में।
अंधो के शहर में अँधा बन गया तो क्या गिला,
शीशे ने पहचाना नहीं तो अपनों से क्या गिला।
नाराज़ ना होना कभी बस यही एक गुज़ारिश है
महकी हुई इन साँसों की साँसों से सिफ़ारिश है।
नाराज़ ना होना कभी बस यही एक गुज़ारिश है,
महकी हुई इन साँसों की साँसों से सिफ़ारिश है।
लोग अच्छी ही चीजों को यहाँ ख़राब कहते हैं,
दवा है हज़ार ग़मों की उसे शराब कहते हैं।
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