में नादाँ था वफ़ा तलाश करता रहा ग़ालिब,
भूल गया कि सास भी एक दिन बेवफा हो जाएंगी।
मेरे शायरी की छांव में आकर बैठ जाते है,
वो लोग जो मोहब्बत की धूप में जले होते है।
चेहरे अजनबी हो जाये तो कोई बात नही,
लेकिन रवैये अजनबी हो जाये तो बडी तकलीफ देते हैं।
हम तो जोङना जानते हैं.. तोङना तो सिखा ही नहीं,
खुद टूट जाते हैं अक्सर.. किसी को छोङना सिखा ही नहीं।
जुल्फों को हटा दे चेहरे से थोडासा उजाला होने दो,
सूरज को जरा शरमिंदा कर, वो रात सा काला होने दो।
No comments:
Post a Comment