कोई सिखा दे हमें भी वादों से मुकर जाना,
बहुत थक गये हैं.. निभाते निभाते।
सो जाऊ या तेरी याद में खो जाऊ,
ये फैसला भी नहीं होता और सुबह हो जाती है।
मुझे क्या करना है तेरे इश्क की कीमत जानकर,
तेरे भरोसे पे बिकना मंजूर है मुझे।
तहजीब की मिसाल गरीबो के घर पे है,
दुपट्टा फटा हुआ है लेकिन सर पे है।
इजहार गर जुबां से हो तो.. मजा क्या है ,
चाहने वाला जो निगाहों को पढ़े.. तो बुरा क्या है।
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