शिकवें आँखों से आँसू बन के गिर पड़े,
वरना होठों से शिकायत कब की मैंने।
माना की बड़ा ही खुबसूरत हुस्न है तेरा,
लेकिन दिल भी होता तो क्या बात होती।
यूँ कफ़न उठाते हो रुख से बार बार,
क्या करोगी मेरा जला हुआ दिल लेकर।
वो एक रात जला तो उसे चिराग कह दिया,
हम बरसो से जल रहे है, कोई तो खिताब दो।
क्यूं बोझ हो जाते है वो झुके हुए कंधे साहब,
जिन पर चढ़कर तुम कभी मेला देखा करते थे।
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