अजीब तमाशा है मिट्टी से बने लोगो का,
बेवफाई करो तो रोते है और वफा करो तो रुलाते है।
अकेला वारिस हूँ उसकी तमाम नफरतों का,
जिसके सारे शहर में आशिक हजार है।
मोहब्बत तेरी सूरत से नही तेरे किरदार से है,
शौक-ऐ-हूस्न होता तो बाजार चले जाते।
तेरी आंखों से एक चीज़ लाजवाब पीता हूँ,
मैं हूँ तो बहोत गरीब पर सबसे महँगी शराब पीता हूँ।
मुश्किल होता है जवाब देना.. जब कोई
खामोश रह कर भी.. सवाल कर लेता है।
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