महफूज़ रख, बेदाग रख, मैली ना कर जिंदगी,
मिलती नहीं इंसान को किरदार की चादर नई।
शुकर किये जा तू मालिक का शुकराना ही भक्ति है,
शिकवे गिले को लब पर अपने न लाना ही भक्ति है।
बहुत गुस्ताख है तेरी यादे इन्हे तमीज सिखा दो,
कमबख्त दस्तक भी नही देती और दिल में उतर जाती है।
लगता है आँखों से अश्क़ों की तरह बरसते रहेंगे हम,
ताउम्र प्यार के लिए इसी तरह तरसते रहेंगे हम।
ख़त्म हुआ अब महबूब की गलियों मे घूमने का दस्तूर,
अब जब भी उनकी याद आती है, DP खोल के देख लेते हैं।
No comments:
Post a Comment