अच्छा हुआ कि तुमने हमें तोड़ कर रख दिया,
घमण्ड भी हमें बहुत था तेरे होने का।
जैसे जलानी थी हमने जला दी जिंदगी..
अब धुँए पर तमाशा कैसा और राख पर बहस कैसी।
डालना अपने हाथों से कफन मेरी लाश पर,
की तेरे दिए जखमों के तोहफे कोई और ना देख ले।
मुड़े-मुड़े से हैं किताब-ऐ-इश्क़ के पन्ने,
ऐ-सनम ये कौन है जो हमें हमारे बाद पढ़ता है।
ये कैसा तुम्हारा ख्याल है जो मेरा हाल बदल देता है,
तूम दिसम्बर की तरह हो जो पूरा साल बदल देता है।
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