एक मशवरा चाहिए था साहेब,
दिल तोड़ा है एक बेवफा ने, जान दे दूं या जाने दूं।
तेरी चाहत में रुसवा यूं सरे बाज़ार हो गये,
हमने ही दिल खोया और हम ही गुनाहगार हो गये।
सीख नहीं पा रहा हूँ मीठे झूठ बोलने का हुनर,
कड़वे सच ने हमसे न जाने कितने लोग छीन लिए।
लोगों की नज़रों में फर्क अब भी नहीं है,
पहले मुड़ कर देखते थे अब देख कर मुड़ जाते हैं।
मसला ये नहीं है के दर्द कितना है,
ग़ालिब, मुद्दा ये है कि परवाह किस किस को है
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