घर में रहा था कौन कि रुखसत करे हमें,
चौखट को अलविदा कहा और चल पड़े।
सिर्फ लफ्ज़ नहीं ये दिलों की कहानी है,
हमारी शायरी ही हमारे प्यार की निशानी है।
पलकों पे आज नींद की किर्चें बिख़र गईं,
शीशे की आँख में कोई पत्थर का ख़्वाब है।
मिली हैं रुह तो फिर रस्मों की बंदिशें क्यों हैं,
जिस्म तो खाक होना है फिर रंजिशे क्यों है।
वैसे ही कुछ कम नहीं थे बोझ दिल पर,
कम्बख़्त, ये दर्जी भी जेब बायीं ओर सिल देता है।
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