जिंदगी अजनबी मोड़ पर ले आई है,
तुम चुप हो मुझ से, और मैँ चुप हूँ सबसे।
यूँ ही बे-सबब नही बनते भँवर दरिया में,
ज़ख्म कोई तो तेरी रूह में उतरा होगा।
ना महोब्बत ही मिली ना जख्म ही भरे,
हम तो आज भी उन्ही राहों पे हैं खड़े।
हम थे, तुम थे, कुछ जज़्बात भी तो थे,
अरे छोड़ो कुछ नहीं, अल्फ़ाज़ ही तो थे।
ज़हन की चादर में ख्यालों के धागे हैं,
ओढ़े हैं जो किरदार सबके सब आधे हैं।
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