दो मुलाकात क्या हुई हमारी तुम्हारी,
निगरानी में सारा शहर लग गया।
अपने खिलाफ बाते खामोशी से सुन लो,
यकीन मानो वक्त बेहतरीन जवाब देगा।
वक़्त को भी हुआ है ज़रूर किसी से इश्क़,
जो वो बेचैन है इतना कि ठहरता ही नहीं।
बडी लम्बी खामोशी से गुजरा हूँ मै,
किसी से कुछ कहने की कोशिश मे।
नींद सोती रहती है हमारे बिस्तर पे,
और हम टहलते रहते हैं तेरी यादों में।
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