उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है,
समंदर है.. मगर प्यासा बहुत है।
यूँ बार बार निहारती हो आईना,
ख़ूबसूरती पे गुमान है.. या शक।
हर्फ़ तीखे और लहज़ा अदब का,
वाह क्या हुनर है तुम में गजब का।
फटे दुपटटे से सर ढक लिया ग़रीबी ने,
हवा में उडता है आंचल अमीरज़ादी का।
सोंचता था.. मैं रह नहीं पाऊंगा तेरे बग़ैर,
देखो.. तुमने ये भी सिखा दिया मुझको।
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