सोच रहा हूँ कुछ ऐसा लिखू की वो..
पढ़ के रोये भी ना और रातभर सोये भी ना।
रुला के जो माना ले वो सच्चा यार है,
ओर जो रुला के खुद आँसू भाए वो सच्चा प्यार है।
अगर तेरी नज़र क़त्ल करने में माहिर है तो सुन,
हम भी.. मर मर के जीने में उस्ताद हो गये है।
लबो पर लफ्ज़ भी अब तेरी तलब लेकर आते हैं,
तेरे जिक्र से महकते हैं तेरे सजदे में बिखर जाते हैं।
एक हसरत थी की कभी वो भी हमे मनाये,
पर ये कम्ब्खत दिल कभी उनसे रूठा ही नही।
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