ऐ चांद आज जरा सोच समझ कर निकलना,
यार मेरे चांद को भूखा रहने की आदत नहीं है।
सुन्दरता का मुक़ाबला, अपने पूरे शबाब पर होगा,
आज एक चाँद दूसरे चाँद के इंतज़ार में होगा।
घुटन सी होने लगी है, इश्क़ जताते हुए,
मैं खुद से रूठ गया हूँ, तुम्हे मनाते हुए।
तुम समझते हो कि जीने की तलब है मुझको,
मैं तो इस आस में ज़िंदा हूँ कि मरना कब है।
अकेले आये थे और अकेले ही जाना है,
फिर साला अकेला रहा क्यूँ नहीं जाता।
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