वो कतरा-कतरा मुझे तबाह करते गये,
हम रेशा-रेशा उनपे निसार होते गए।
बदल जाती है ज़िंदगी की हक़ीक़त,
जब तुम मुस्कुराकर कहते हो तुम बहुत प्यारे हो।
सुनो! मुख़्तलिफ़ है इश्क़ का गणित,
यहाँ तुम और मैं – दो नहीं एक होते हैं।
मीठी सी खुशबू में रहते है गुमसुम,
अपने अहसास से बाँट लू तंहाई तेरी।
मइय्यत पे मेरी आए हैं कुछ इस अदा से वो,
सब उन पे मर मिटे हैं मुझे तन्हा छोड़ के।
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