दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे ऐहसान उतारता है कोई,
आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर मे जानता है कोई,
पक गया है सजर मे फल शायद,
फिर से पत्थर उछालता है कोई,
दूर तक गूंजते है सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई!
जैसे ऐहसान उतारता है कोई,
आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर मे जानता है कोई,
पक गया है सजर मे फल शायद,
फिर से पत्थर उछालता है कोई,
दूर तक गूंजते है सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई!
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