अगर सफ़र में मेरे साथ मेरा यार चले,
तवाफ़ करता हुआ मौसमे-बहार चले।
नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे,
कि मेरे बाद मेरा ज़िक्र बार-बार चले।
जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है,
यहीं संभाल के पहना, यहीं उतार चले।
यही तो इक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की,
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले।
तवाफ़ करता हुआ मौसमे-बहार चले।
नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे,
कि मेरे बाद मेरा ज़िक्र बार-बार चले।
जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है,
यहीं संभाल के पहना, यहीं उतार चले।
यही तो इक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की,
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले।
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