एक चाहत होती है... अपनों के साथ जीने की,वरना पता तो हमें भी है ...कि मरना अकेले ही है!”
मित्रता एवं रिश्तेदारी
"सम्मान" की नही
"भाव" की भूखी होती है...
बशर्तें लगाव
"दिल" से होना चाहिए
"दिमाग" से नही.
महीने बीत जाते हैं ,
साल गुजर जाता है ,
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर ,
मैं तेरी राह देखती हूँ।
आँचल भीग जाता है ,
मन खाली खाली रहता है ,
तू कभी नहीं आता ,
तेरा मनि आर्डर आता है।
इस बार पैसे न भेज ,
तू खुद आ जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने 🏡घर लेकर जा।
तेरे पापा थे जब तक ,
समय ठीक रहा कटते ,
खुली आँखों से चले गए ,
तुझे याद करते करते।
अंत तक तुझको हर दिन ,
बढ़िया बेटा कहते थे ,
तेरे साहबपन का ,
गुमान बहुत वो करते थे।
मेरे ह्रदय में अपनी फोटो ,
आकर तू देख जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने 🏡घर लेकर जा।
No comments:
Post a Comment