वो कर दिया तूने जो ना कर पाए हकीम भी,
के तेरे छूने से अब मीठा हो गया है नीम भी।
हिसाब किताब हमसे ना पूछ अब, ऐ ज़िन्दगी..
तूने सितम नहीं गिने, तो हमने भी ज़ख्म नहीं गिने।
हासिल कर के तो हर कोई मोहब्बत कर सकता है,
बिना हासिल किए किसी को चाहना.. कोई हम से पूछे।
मेरी हर तलाश तुम पर ही खत्म होगी,
मैंने अपनी आरज़ूओं को बस इतने ही पंख लगाये हैं।
मेरी बाहें जब तरसती हैं तुम्हे अपने सीने से लगाने को,
मैं कागज़ पे उतार के तुम्हें, अक्सर अपने गले लगाता हूँ।
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