प्यास तो मर कर भी नहीं बुझती ज़माने की,
मुर्दे भी जाते जाते गंगाजल का घूँट मांगते है।
तलब में शुमार इस कदर दीदार उनका,
सौ बार भी मिल जाये अधूरा लगता है।
तुम्हारा सिर्फ हवाओं पे शक़ गया होगा,
चिराग़ खुद भी तो जल-जल के थक गया होगा।
बड़ी तब्दीलिया लाया हूँ अपने आप मे लेकिन,
बस तुमको याद करने की वो आदत अब भी है।
नाम तेरा ऐसे लिख चुके है अपने वजूद पर,
कि तेरे नाम का भी कोई मिल जाए.. तो भी दिल धड़क जाता है।
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