एक चाहत थी.. तेरे साथ जीने की,
वरना, मोहब्बत तो किसी से भी हो सकती थी।
कोशिश हज़ार की के इसे रोक लूँ मगर,
ठहरी हुई घड़ी में भी.. ठहरा नहीं ये वक्त।
मुझको छोड़ने की वजह.. तो बता देते,
मुझसे नाराज थे या मुझ जैसे हजारों थे।
शायरी भी एक खेल है शतरंज का,
जिसमे लफ़्ज़ों के मोहरे मात दिया करते हैं एहसासों को।
कागज के बेजान परिंदे भी उड़ते है,
जनाब, बस डोर सही हाथ में होनी चाहिए।
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