Thursday, April 4, 2019

Hindi Poems Poetry

उलझनों और कश्मकश में उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ..
ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |

लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख – मिचौली का ..
मिलेगी कामयाबी हौसला कमाल लिए बैठा हूँ |

चल मान लिया दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक
गिरेबान में अपने ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ |

ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हें मुबारक ..
मुझे क्या फ़िक्र मैं कश्तियां और दोस्त बेमिसाल लिए बैठा हूँ..

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