देखता रहता हूँ हाथों की लकीरों को..
दिन रात, यार का दीदार कहीं लिखा हो शायद।
बातें तो हम भी उनसे बहुत करना चाहते है,
पर ना जाने क्यूँ वो हमसे मुँह छुपाये बैठे है।
सो गई है शहर की सारी गलिया,
अब जागने की बारी मेरी है।
तेरे सिवा कौन समा सकता है मेरे दिल में,
रूह भी गिरवी रख दी है मैंने तेरी चाहत में।
धड़कनों को भी रास्ता दे दीजिये हुजूर,
आप तो पूरे दिल पर कब्जा किये बैठे है।
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