कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फ़ुर्सत में याद कर के..
हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं, पर हिच-किचा रही है।
गलतफहमी से बढ़कर दोस्ती का दुश्मन नहीं कोई,
परिंदों को उड़ाना हो तो बस शाख़ें हिला दीजिए।
रातो को आवारगी की आदत तो हम दोनों में थी,
अफ़सोस चाँद को ग्रहण और मुझे इश्क हो गया।
आज बता रहा हूँ नुस्खा-ए-मौहब्बत ज़रा गौर से सुनो,
न चाहत को हद से बढ़ाओ न इश्क़ को सर पे चढ़ाओ।
मोहब्बत करने वालों को वक़्त कहाँ जो गम लिखेंगे
ए-दोस्तों, कलम इधर लाओ इन बेवफ़ाओं के बारे में हम लिखेंगे।
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