अब इतना भी खूब ना लिखा करो यारो,
आप सबके अल्फ़ाज़ों से इश्क़ सा होने लगा है।
क्या मुझे तेरी बाहों में पनाह मिल सकती है,
मुझे अपनी जिंदगी की आखिरी सांस लेनी है।
बडी मुख़्तसर वजह है, मेरे झुक कर मिलने की,
मिट्टी का बना हूँ, गुरुर जँचता नहीं मुझ पर।
रहकर तुझसे दूर, कुछ यूँ वक़्त गुज़ारा मैंने ना होंठ हिले,
ना आवाज़ आई फिर भी हर वक़्त तुझको पुकारा मैंने।
एहसान किसी का वो रखते नहीं, मेरा भी चुका दिया,
जितना खाया था नमक मेरा, मेरे जख्मों पर लगा दिया।
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