किस कदर अजीब है ये सिलसिला-ए-इश्क़,
मोहब्बत तो कायम रहती है पर इन्सान टूट जाते है।
एक चाहत होती है, जनाब़ अपनों के साथ जीने की,
वरना पता तो हमें भी है कि ऊपर अकेले ही जाना है।
लगता है आँखों से अश्क़ों की तरह बरसते रहेंगे हम,
ताउम्र प्यार के लिए इसी तरह तरसते रहेंगे हम।
चैन तुमसे है करार तुमसे है जिंदगी की बहार तुमसे है,
क्या करुंगा पूरी दुनिया को लेकर मेरे दिल को तो बस प्यार तुमसे है।
माना की खुद चलकर आए है हम तेरे दर पर ऐ मोहब्बत,
लेकिन दर्द, दर्द और सिर्फ दर्द ये कहाँ की मेहमान नवाजी है।
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