दिल पे आये हुए इलज़ाम पहचानते है,
लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते है..
लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते है..
आईना-दार-ए-मोहब्बत हूँ कि अरबाब-ए-वफ़ा,
अपने ग़म को मेरे अंजाम से पहचानते है..
अपने ग़म को मेरे अंजाम से पहचानते है..
वादा हो शाम का कभी इक वजह-ए-मुलाक़ात सही,
हम तुझे गर्दिश-ए-अय्याम से पहचानते है..
हम तुझे गर्दिश-ए-अय्याम से पहचानते है..
पाँव फटे क्यूँ मेरी पलकों से सजाते हो इन्हे
ये सितारे तो मुझे शाम से पहचानते है।
ये सितारे तो मुझे शाम से पहचानते है।
No comments:
Post a Comment