Monday, February 4, 2019

Hindi Poems Poetry

दिल पे आये हुए इलज़ाम पहचानते है,
लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते है..
आईना-दार-ए-मोहब्बत हूँ कि अरबाब-ए-वफ़ा,
अपने ग़म को मेरे अंजाम से पहचानते है..
वादा हो शाम का कभी इक वजह-ए-मुलाक़ात सही,
हम तुझे गर्दिश-ए-अय्याम से पहचानते है..
पाँव फटे क्यूँ मेरी पलकों से सजाते हो इन्हे
ये सितारे तो मुझे शाम से पहचानते है।

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