लोग कहते हैं समझो तो खामोशियाँ भी बोलती हैं,
मैं अरसे से ख़ामोश हूँ वो बरसों से बेख़बर है।
रात के काले धब्बे ले कर चाँद मुझे यूँ लगता है,
जैसे रुई के फाहे से तूने काजल अभी मिटाया हो।
काश की कयामत के दिन हिसाब हो सब बेबफाओ का,
और वो मुझसे लिपट कर कहे की मेरा नाम मत लेना।
सर झुकाने की खूबसूरती भी क्या कमाल की होती हैं,
जमीं पर सर रखों और दुआ आसमान में कुबूल हो जाती हैं।
नज़ाकत आपकी है शिकायत हमारी है कि जब भी,
मुस्करा कर देख लेते हो कसम से दम निकल जाता है।
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