क्या हसीन इत्तेफाक़ था तेरी गली में आने का,
किसी काम से आये थे, किसी काम के ना रह।
है सागर अगर तू नदी मैं ना बनूँ,
बनूँ वो कश्ती कि डूबूँ तो तुझमें ही रहूँ।
देखा तुझे, चाहा तुझे सोंचा तुझे, पूजा तुझे,
मांगा खुदा से तेरे सिवा, हमने कुछ भी नही।
बचपन साथ रखियेगा जिंदगी की शाम में,
उम्र महसूस ही न होगी सफ़र के मुकाम में।
क्यूं एक आस अब तक तुझसे बंधी है,
क्यूं इंतजार हैं अब तक तेरा लोट आने का।
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