मेरे बस मे नहीं अब हाल-ए-दिल बयां करना,
बस ये समझ लो लफ़्ज़ कम मोहब्बत ज्यादा हैं।
काश क़ैद करलें वो पागली अपनी दिल की डायरी में,
जिसका नाम छुपा रहता है मेरी हर शायरी में।
मिल जाए उलझनो से फुरसत तो जरा सोचना,
क्या सिर्फ फुरसतों मे याद करने तक का रिश्ता है हमसे।
महक रही है ज़िंदगी आज भी,
जिसकी खुशबू से वो कौन है जो बसा है मेरी यादों मे।
काश, बनाने वाले ने थोड़ी-सी होशियारी और दिखाई होती,
इंसान थोड़े कम और.. इंसानियत ज्यादा बनाई होती।
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