मुझे परखने में उसने पूरी जिंदगी लगा दी,
काश, कुछ वक्त समझने में लगाया होता।
हमसे रूठा भी गया हम मनाये भी गये,
फिर सब नक्श ताल्लुक के मिटाये भी गये।
भरम अपना भी रहने दे भरम मेरा भी रहने दे,
सुना है.. पास आने से तसव्वुर टूट जाता है।
अब आ गई है सहर अपना घर सम्भालने को,
चलूं कि जागा हुआ रातभर का.. मैं भी हूं।
भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया,
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला।
No comments:
Post a Comment