क्या बताये अपनी चाहतों का आलम,
वो पल ही याद नहीं.. जिस पल तुझे हम भूले हों।
मोहब्बत की दास्ताँ लिखने का हुनर तो आ गया
पर महबूब को मनाने में...अब भी नाकाम हूँ मैं।
तुम से सदियों की वफाओं का कोई नाता न था,
तुम से मिलने की लकीरें थीं मेरे हाथों मे।
हर पल में प्यार है, हर लम्हे में ख़ुशी है,
खो दो तो याद है.. जी लो तो ज़िन्दगी है।
कोई तीर होता तो, दाग़ देते तेरे दिल पर,
कमबख्त मौहब्बत है, जताई भी नही जाती।
मुझमें हजार ख़ामियां है माफ किजिए,
पर अपने आइने को भी तो कभी साफ किजिए।
कच्चे-रिश्ते, और अधूरा-अपनापन,
मेरे हिस्से में आई हैं ऐसी ही सौग़ातें।
तुमको जब बोझ लगे मेरा साथ तो बता देना,
मैं चुपके से तेरी मोहब्बत से मुकर जाऊँगा।
तुम भी अच्छे तुम्हारी वफ़ा भी अच्छी,
बुरे तो हम है जिनका दिल नही लगता तुम्हारे बिना।
सारी उम्र तो कोई जीने की वजह नहीं पूछता,
लेकिन मौत वाले दिन सब पूछते है कि कैसे मरे।
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