मैं हवाओं की तरफ़ पीठ किए बैठा हूँ,
कम से कम रेत से आँखें तो बचेंगी।
तू इस कदर मुझे अपने करीब लगता है,
तुझे अलग से जो सोचूँ, तो अजीब लगता है।
मुझे फ़ुरसत ही कहाँ मौसम सुहाना देखूं,
मैं तेरी याद से निकलूं तो ज़माना देखूं।
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो,
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो।
उलझते सुलझते हुए जिंदगी के हर पल और,
खुश्बू बिखेरता हुआ तेरा खुश्बुदार सा ख्याल।
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