Friday, December 1, 2017

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे...Kabir ke dohe...

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
 पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.
अर्थ : मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो , उन्हें तुम अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई न खाएगा.

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