चाह नही, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नही सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर पर चडूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोङ लेना वनमाली!
उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृ-भूमि पर शीश चढाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।।
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नही सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर पर चडूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोङ लेना वनमाली!
उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृ-भूमि पर शीश चढाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।।
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