प्रेम की धारा, बहती है जिस दिल में,
चर्चा उसकी होती है, हर महफ़िल में।
चूम लेती हैं लटक कर, कभी चेहरा कभी लब,
तुमने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चड़ा रखा हैं।
चेहरा देख कर इंसान पहचानने की कला थी मुझमें,
तकलीफ़ तो तब हुई जब इन्सानों के पास चेहरे बहुत थे।
होता अगर मुमकिन तो.. तुझे साँस बना कर रखते अपने दिल में,
तू रुक जाये तो मैं नही, मैं मर जाऊँ तो तूम नही।
किन लफ़्ज़ों में बंया करूँ मैं अपने दर्द को,
सुनने वाले तो बहुत है मगर समझने वाला कोई नही।
आख़िरी घूंट तक उसे पिला साक़ी,
मयकदे की कसम अभी भी होश में है वो।
आँखों मे लगाकर काजल, जुल्फों मे बसाकर बादल,
ए मेरे सनम तुम कहा चले, हवा मे ल़हरा कर आँचल।
दिल मे ना जाने कैसे तेरे लिए इतनी जगह बन गई,
तेरे मन की हर छोटी सी चाह मेरे जीने की वजह बन गई।
ब इस से ज्यादा क्या नरमी बरतू,
दिल के ज़ख्मो को छुया है तेरे गालों की तरह।
शहर भर की जुलेखाओ को पर्दे की नसीहत करने वाले बहोत हैं,
कोई मेरे शहर के यूसुफो से भी कहे के निगाहे नीची रखें।
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